ललित दुबे। जमशेदपुर. कोल्हान की पांच विधानसभा सीटें खास परिवारों की राजनीतिक जमीन साबित हुई हैं। कहीं पिता के बाद बेटा, ताे कहीं पति के बाद पत्नी विधायक बनीं। यही नहीं कई राजनीतिक परिवार में कोशिशें जारी हैं। बहरागोड़ा में भाजपा से पिता-पुत्र की जोड़ी हिट रही है। यहां से डाॅ. दिनेश षाड़ंगी 2000 और 2009 में विधायक रहे। 2009 में झामुमो के विद्युतवरण महतो ने उन्हें हराया। 2014 में डाॅ. दिनेश के बेटे कुणाल षाड़ंगी ने झामुमाे के टिकट पर चुनाव लड़ा अाैर विधायक बने। इस बार कुणाल भाजपा से मैदान में हैं।
उधर, जगन्नाथपुर सीट से मधु कोड़ा विधायक बने अाैर फिर सीएम बन गए। उनके घाेटालाें में फंसने के बाद पत्नी गीता कोड़ा विधायक बनीं। पिछले लाेकसभा चुनाव में वे सिंहभूम सीट से कांग्रेस की सांसद चुनी गईं। मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति भी एक ही परिवार के बीच घूमती रही है। यहां से पहले देवेंद्र मांझी विधायक बने। उनके िनधन के बाद हुए उपचुनाव में पत्नी जोबा मांझी विधायक बनीं।
पॉलिटिक्स स्टार...विरासत और राजनीतिक जमीन बरकरार रहे इसलिए जारी है जद्दोजहद
जगन्नाथपुर सीट
लगातार 20 वर्षों से यहंा कोड़ा दंपती का कब्जा
20 वर्षाें से यह सीट कोड़ा दंपती के कब्जे में है। पहली बार वर्ष 2000 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले मधु कोड़ा ने 2005 में निर्दलीय लड़ा और चुनाव जीता भी।
इसके बाद इनकी पत्नी गीता कोड़ा साल 2009 और साल 2014 में यहां से विजयी हुईं और कब्जा बरकरार रखा।
मनाेहरपुर सीट
देवेंद्र के सपने संजाे रखे हैं उनकी पत्नी जोबा ने
इस सीट से 1985 में देवेंद्र मांझी विधायक बने थे। उन्होंने अपना संगठन बनाया था और फिर पहचान बनाई। 14 अक्टूबर 1994 को उनकी हत्या हो गई। उनके सपने पूरे करने का दायित्व पत्नी पर आ गया।
1995 के विस चुनाव में पत्नी जोबा माझी चुनाव लड़ीं और विधायक बनीं। 2000, 2005 2014 में भी विधायक बनीं।
सरायकेला सीट
कृष्णा की राजनीतिक पारी नहीं जीत पाईं मोती
सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में एक समय झामुमाे के कृष्णा मार्डी का दबदबा था। 1985 और 1990 में लगातार जीता। सिंहभूम सीट से सांसद बनने पर 1992 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मैदान में आईं।
उनकी पत्नी मोती मार्डी 1992 के उपचुनाव में दमखम से मैदान में उतरीं, पर जीत नहीं सकी। उन्हें चंपई सोरेन ने हराया।
ईचागढ़ सीट
सुधीर की कर्मभूमि से पत्नी सविता मैदान में
झामुमो के टिकट पर सुधीर महतो ईचागढ़ से दो बार विधायक बने। 1990 में संयुक्त बिहार के वक्त बिहार विधानसभा के सदस्य रहे, तो 2005 में झारखंड विधानसभा के सदस्य चयनित हुए।
सुधीर महतो के निधन के बाद इसी सीट से उनकी पत्नी सविता महतो चुनाव लड़ रही हैं।
घाटशिला सीट
विरासत बचाने को जंग में उतरी हैं डाॅ. सुनीता
काेल्हान की छठी सीट पर पारिवारिक विरासत बचाने की जंग हाे रही है। घाटशिला से झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं डाॅ. सुनीता सोरेन के ससुर बास्ता सोरेन 1960 के दौरान विधायक रहे थे।
अपनी ससुराल की राजनीतिक जमीन बचाने को बहू मैदान में हैं। किसी भी हाल में परिवार की विरासत वापस चाहती हैं।